Thursday, September 27, 2018

智利海洋保护区一举超过国土面积

智利宣布将新建拉帕努伊、胡安·费尔南德斯和合恩角三大海洋保护区。2018年建成后,智利的海洋公园总面积将超过180万平方公里。

上周,第4届国际海洋保护区大会在智利沿海城市维尼亚德尔马落下帷幕。会议期间,智利总统米歇尔·巴切莱特公布了上述决定。

 “我们的海洋保护区面积将超过我们的领土面积,”智利外交部长埃拉尔多·穆尼奥斯在谈及麦哲伦海洋保护区网络的建立时兴奋地说道。该网络将包括3个新的和2个现有的海洋保护区。

海洋保护区是为了保护而划定、规范和管理的地理区域,通过保护生态系统、保障海洋生物的繁殖,为生物多样性提供庇护。这些区域同时也为人类研究正在承受气候变化和人类活动影响的海洋创造了条件。

 “智利海洋公园具有很高的科学价值,因为它不仅能保护美洲最南端的群岛,还能保护和研究那些几乎尚未勘探的海底山脉,”智利生态和生物多样性研究所研究员弗朗西斯科·斯凯奥说。他还说:“人类在这些海底山脉中发现了存世12500年之久的珊瑚种类——这是研究气候变化的关键资料。”麦哲伦海峡和智利南极地区新成立的合恩角海洋公园是全球位置最南的海洋保护区,被认为是监测气候和生物变化的绝佳之地。该地区曾被纳入国家和国际长期生态研究点网络,因此在2005年,联合国教科文组织宣布比格尔海峡和合恩角之间的整块区域为世界生物圈保护区。

 “我们已经为建立环境保护区这件事奋斗很多年了,”非政府组织Oceana智利分部执行董事莉丝贝特·范德·梅尔说。她还说,如果没有当地拉伊格拉社区的全程积极参与,这个环境保护区不可能维持下去。

从政令到行动

目前,环保主义者都在关注新海洋保护区如何开展工作。

 “管理是关键,我们不想要一座纸上谈兵的公园。我们离这些面积庞大的海洋保护区那么远,执法和守法工作都面临大量挑战,”保护国际海洋中心副主任奥拉妮·威勒姆说。

 “管理管的不是自然,而是人。我们需要厘清个中关系。”威勒姆说。

她说,目前全球有30个海洋保护区,分布在14个国家,总面积2130万平方公里,等于全球海洋面积的6%。

对于智利最大的海产品进口国之一中国,智利扩大海洋保护区面积的决定具有重要影响。中国是智利海鲜的第三大买家,2010至2015年间,智利海产品对华出口额从14亿美元飙升至87亿美元,其中以大西洋鲑鱼居首。

 “去年智利是中国第8大海鲜出口国,”智利驻华大使贺乔治2016年时说。“我们希望到2020年能跻身前三。”

Monday, September 3, 2018

हवाई सफ़र की दुनिया बदल देंगे ये बैटरी वाले विमान

हाल ही में भारत में पहली बायोफ़्यूल कमर्शियल फ़्लाइट ने उड़ान भरी. देहरादून से दिल्ली की इस उड़ान में जो ईंधन इस्तेमाल हुआ, उससे प्रदूषण भी कम फैलेगा और उड़ान का ख़र्च भी कम होगा.
हवाई सफ़र सस्ता हो, पर्यावरण के लिए मुफ़ीद हो, इसके लिए दुनिया भर में कोशिशें हो रही हैं. उत्तरी यूरोपीय देश नॉर्वे ने इस कोशिश में बाज़ी मार ली है.
इसी साल जुलाई महीने में नॉर्वे के परिवहन मंत्री केटिल स्लोविक-ओस्लेन और नॉर्वे की एयरपोर्ट कंपनी एविनॉर के प्रमुख डाग फ़ॉक-पीटरसन ने एक छोटी-सी उड़ान भरी थी. ये बहुत ही ख़ास फ़्लाइट थी.
मीडिया के हुजूम की मौजूदगी में ये दोनों लोग एक टू-सीटर विमान पर सवार हुए. इस विमान को स्लोवेनिया की कंपनी पिपिस्ट्रेल ने बनाया था. इसका नाम है अल्फ़ा इलेक्ट्रो जी-2. विमान को ख़ुद फ़ॉक-पीटरसन उड़ा रहे थे. इस फ़्लाइट ने नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के कुछ चक्कर लगाए.
अब आप को इस उड़ान की ख़ूबी बताते हैं. पहले तो आप विमान के नाम से ही समझ गए होंगे. और नहीं समझे तो ये जान लीजिए कि ये विमान पूरी तरह से इलेक्ट्रिक था. यानी बैटरी से उड़ रहा था.
वैसे स्लोविक-ओल्सेन और फ़ॉक-पीटरसन ये उड़ान मौज-मस्ती के लिए नहीं भर रहे थे. असल में नॉर्वे ने बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. वो 2040 तक प्रदूषण का स्तर बहुत कम करने का इरादा रखता है. आज से 22 साल बाद नॉर्वे का इरादा सभी छोटी फ़्लाइट को इलेक्ट्रिक विमानों से पूरा करने का है.
विमानों से होने वाले प्रदूषण को घटाने की ये सबसे बड़ी योजना है. दिक़्क़त ये है कि अभी दुनिया में ऐसा कोई यात्री विमान नहीं बना है, जो कमर्शियल उड़ानों के लिए मुफ़ीद हो.
यूं तो दुनिया में कई कंपनियां इलेक्ट्रिक विमान बना रही हैं. मगर वो सभी ऐसे ही छोटे विमान हैं, जैसे विमान में नॉर्वे के परिवहन मंत्री ने उड़ान भरी थी. लेकिन एविनॉर के प्रमुख फ़ॉक-पीटरसन का कहना है कि ये हालात बहुत जल्द बदलने वाले हैं. आज से कुछ साल पहले नॉर्वे की तमाम विमान कंपनियों के मालिक यही मानते थे कि इलेक्ट्रिक विमान दूर की कौड़ी हैं. मगर आज वो हक़ीक़त बन चुके हैं.निया की दो बड़ी कंपनियां एयरबस और बोइंग, दोनों ही इलेक्ट्रिक विमान विकसित करने पर काम कर रही हैं. बोइंग ने इसके लिए ज़ुनुम एरो नाम की कंपनी बनाई है, जो नासा के साथ मिलकर इस मिशन पर काम कर रही है.
नॉर्वे छोटा-सा देश है. इसका ज़्यादातर इलाक़ा पहाड़ी है. छोटी दूरियों के लिए सड़क से जाने की बजाय उड़ान भरना बेहतर होता है. यानी यहां छोटी दूरी की उड़ानों के लिए काफ़ी संभावनाएं हैं. ख़ुद एविनॉर कंपनी नॉर्वे में 46 हवाई अड्डे चलाती है. एविनॉर के प्रमुख फ़ाक-पीटरसन कहते हैं कि सर्दियों में नॉर्वे की सड़कों पर चलना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए लोग फ्लाइट से चलते हैं. नॉर्वे में ऐसी बहुत-सी उड़ानें हैं, जो 15 से 30 मिनट में पूरी हो जाती हैं.
अब नॉर्वे की कोशिश है कि उसे 25-30 सीटों वाले विमान मिल जाएं जो इलेक्ट्रिक ऊर्जा से चलते हों. यहां का परिवहन मंत्रालय बैटरी से चलने वाले विमानों की उड़ान 2025 से शुरू करना चाहता है.टरनेशनल कंसल्टिंग कंपनी रोलां बर्जर का कहना है कि इस वक़्त दुनिया भर में इलेक्ट्रिक विमान बनाने के 100 से ज़्यादा प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है. नॉर्वे में जिस विमान ने उड़ान भरी, उसे बनाने वाली स्लोवेनिया की पिपिस्ट्रेल इन में से एक है. इस कंपनी के प्रवक्ता टाजा बोस्कैरोल कहते हैं कि उनकी कंपनी कई फ़ोर-सीटर विमान बना रही है. इनमें से एक है टॉरस जी-4 जो दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक फ़ोर सीटर विमान होगा.
टाजा बोरस्कैल कहते हैं कि उन्होंने हाइब्रिड ईंधन से चलने वाले विमान भी बनाए हैं. ये विमान 2019 तक उड़ान के लिए तैयार होगा.
पिपिस्ट्रेल का मानना है कि उसके विमान ट्रेनिंग के काम में इस्तेमाल हो सकेंगे. वो 2025 तक 19 मुसाफ़िरों को ले जा सकने वाला फ़्यूल सेल विमान भी बनाने पर काम कर रहे हैं.
पिपिस्ट्रेल का सीधा मुक़ाबला बोइंग की सहयोगी कंपनी ज़ुनुम एरो से है. ज़ुनुम एरो इससे भी बड़े विमान बनाने पर काम कर रही है. इसके सीईओ आशीष कुमार कहते हैं कि नॉर्वे की पहल से उनका हौसला बढ़ा है.
ज़ुनुम एरो शुरुआत में छोटी दूरी की उड़ान के लिए 12 सीटों वाला विमान विकसित कर रही है. इसके 2022 तक उड़ान भरने की उम्मीद है. इसके बाद कंपनी 50 सीटों वाला बैटरी चालित विमान बनाएगी जो एक हज़ार मील तक उड़ान भर सकेगा. कंपनी का इरादा  के दशक के आख़िर तक 100 सीटों वाला इलेक्ट्रिक विमान विकसित करने का है.
विमानों को उड़ाने में बहुत ईंधन लगता है. मुसाफ़िरों और उनके सामान का वज़न उठाए हुए आसमान में उड़ना मामूली काम तो है नहीं. ऐसे में विमानों की ईंधन की ज़रूरत बैटरी के ज़रिए पूरी करना चुनौती भरा है क्योंकि बैटरी से ईंधन तो मिल जाएगा, मगर उनका ख़ुद का वज़न भी विमानों को उठाना पड़ेगा. ज़ुनुम एरो के आशीष कुमार कहते हैं कि 'बड़ी चुनौती ये है कि विमान में लगे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को क्या बैटरी से लगातार चलाया जा सकता है?'
अगर इलेक्ट्रिक विमान छोटी दूरी की उड़ानों के लिए ही तैयार किए जाते हैं तो इससे बैटरी के बोझ वाली दिक़्क़त दूर हो जाएगी.
दुनिया भर में बड़े विमान 4000 मील तक की दूरी तय करने के लिहाज से बनाए जाते हैं. मगर इनमें से 80 फ़ीसद केवल 1500 मील तक की दूरी तय करने के लिए काम में लाए जाते हैं. आशीष कुमार कहते हैं कि समय आ गया है कि छोटी दूरी के लिए ऐसे भारी-भरकम विमान न इस्तेमाल हों. इनकी जगह बैटरी से उड़ने वाले विमान ले सकते हैं.
छोटे विमानों के कई फ़ायदे हैं. वो ईंधन कम खाएंगे. उनके लिए बड़े एयरपोर्ट बनाने की ज़रूरत नहीं होगी. वो ज़्यादा शोर नहीं मचाएंगे, यानी प्रदूषण भी कम होगा. ऐसे विमान उड़ाने का ख़र्च कम होगा. इससे हवाई सफ़र सस्ता होगा. सस्ते टिकट का मतलब ये है कि ज़्यादा लोग हवाई सफ़र कर सकेंगे.
इस वक़्त जो बड़े विमान हैं वो बहुत ईंधन खाते हैं. बहुत प्रदूषण फैलाते हैं. जैसे कि बोइंग का 787 ड्रीमलाइनर 1.3 मेगावाट बिजली पैदा करता है. इतनी बिजली से 850 घरों की बिजली की ज़रूरतें पूरी की जा सकती हैं.
एविनॉर के फ़ॉक-पीटरसन कहते हैं कि बैटरी से चलने वाले शुरुआती विमानों में शायद हाइब्रिड इंजन इस्तेमाल हों. मतलब ये कि वो फ़िलहाल इस्तेमाल होने वाला ईंधन भी बैटरी के साथ-साथ इस्तेमाल करेंगे.
इसके बाद हवाई अड्डों पर रिचार्जिंग की सुविधा भी मुहैया करानी होगी. जैसे इन दिनों ऊबर जैसी कंपनियां जगह-जगह चार्जिंग प्वाइंट लगाती हैं. जहां उनके ड्राइवर बैटरी रिचार्ज कर सकते हैं.गर नॉर्वे का मिशन सफल होता है, यहां 90 मिनट से ज़्यादा देर तक उड़ने वाले इलेक्ट्रिक विमान तैयार हो जाते हैं तो इसका असर दूसरे यूरोपीय देशों पर भी होगा.
विमान बनाने वाली कंपनियां जैसे एयरबस पहले से ही 100 सीटों वाले बैटरी चालित विमान के डिज़ाइन पर काम कर रही हैं.
वैसे इलेक्ट्रिक विमानों के लिए बुनियादी ढांचे का विकास भी बड़ी चुनौती है. विमानों की बैटरी चार्ज करने का इंतज़ाम खर्चीला है. नॉर्वे तो धनी देश है. दूसरे देशों को ऐसा बुनियादी ढांचा विकसित करने में पैसे और वक़्त दोनों लगाने पड़ेंगे.
तब तक फ़ॉक-पीटरसन जैसे पायलट, विमान को हवाई अड्डे पर उतारेंगे, उन्हें चार्जिंग पर लगाएंगे और आराम करेंगे. बैटरी चार्ज होगी तब तक वो आराम कर चुके होंगे और नए सफ़र पर निकल जाएंगे.